भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हक़ीक़त की तह तक पहुँच तो गए हैं / दीप्ति मिश्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:48, 11 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीप्ति मिश्र |संग्रह=है तो है / दीप्ति मिश्र }} [[Categ...)
हक़ीकत की तह तक पहुँच तो गए हैं लेकिन
मगर सच में ख़ुद को उतारेंगे कैसे।
न जीने की चाहत, न मरने की हसरत
यूँ दिन ज़िन्दगी के गुज़ारेंगे कैसे।