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हक़ीक़त बयां भी न होगी ज़माने / हरिराज सिंह 'नूर'

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हक़ीक़त बयां भी न होगी ज़माने।
तो फिर हमसे ‘हाँ’ भी न होगी ज़माने।

रहेंगे यहीं पर फ़क़त जलने वाले,
मुहब्बत यहाँ भी न होगी ज़माने।

अगर ऐसे हालात क़ाइम रहे तो,
जवानी जवां भी न होगी ज़माने।

बना हब्स यूँ ही रहेगा हवा तो,
चमन में रवां भी न होगी ज़माने।

तू कर कोशिशें, मेरा दावा है, मेरी,
कहानी अयां भी न होगी ज़माने।

फ़साना हमेशा फ़साना रहेगा,
हक़ीक़त निहां भी न होगी ज़माने।

कहा ‘नूर’ का माने तू या न माने,
ज़ुबां, बेज़ुबां भी न होगी ज़माने।