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हकीकत है कोई किस्सा नहीं है / संदीप ‘सरस’

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हकीकत है कोई किस्सा नहीं है।
वो भूखा है मगर झूठा नहीं है।

सबब है बदनसीबी का यक़ीनन
कि सर पे बाप का साया नहीं है।

वो वाकिफ़ है जड़ों की हैसियत से
जो पत्ता डाल से टूटा नहीं है।

ये बच्चे पीठ पर जो ढो रहे हैं,
यकीनन बोझ है बस्ता नहीं है।

जो होना है वो होकर ही रहेगा,
न हो ऐसा कभी होता नहीं है।

कोई सूरत न सीरत के मुकाबिल,
वो सुंदर है मगर सच्चा नहीं है।
 
वो मेले से भरे मन से है लौटा
खिलौना एक भी सस्ता नहीं है।

किसी की पीठ पर चढ़ने से सुन लो,
किसी का कद हुआ ऊंचा नहीं है।

कलेजा चीरना पड़ता है यारों
ग़ज़ल का शेर यूँ होता नहीं है।