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|रचनाकार=बशीर बद्रशाहिद माहुली
|संग्रह= शहर ख़ामोश है / शाहिद माहुली
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समन्दरों में कभी तिश्नगी के सहरा में
कहाँ-कहाँ न फिरा लेके आब -ओ-दाना मेरा
तमाम शहर से लड़ता रहा मेरी ख़ातिर
वो और लोग थे जो मांग ले गए सब कुछ
यहाँ तो शर्म थी दस्त --तलब उठा न मेरा
मुझे तबाह किया इल्तिफ़ात ने उसके
उसे भी आ न सका रास दोस्ताना मेरा
किसे कबूल क़बूल करें और किसको ठुकराएँ
इन्हीं सवालों में उलझा है ताना-बाना मेरा
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