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हटाया चाँद ने घूंघट / चन्द्रगत भारती

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अँधेरो की हुकूमत में
अभी तक जी रहा था मैं
हटाया चाँद ने घूंघट
उजाला हो गया घर में।

नहीं मालूम था मुझको
अभी तक घर की परिभाषा
अभावों मे जिया हूं मै
कहाँ कुछ भी थी अभिलाषा
नहीं कोई ठिकाना था
भटकता फिर रहा था मैं
पड़े उसके कदम जिस दम
निवाला हो गया घर में।।
हटाया चाँद ने-----

सुबह से शाम तक पायल
छनकती जब भी'आँगन में
बहारों सी हँसी उसकी
खनकती जब भी' आँगन में
चमक उठतीं मेरी आँखें
घुटन में जी रहा था मैं
महकती है फिजायें अब
शिवाला हो गया घर में।।
हटाया चाँद ने----'

कसम से क्या कहूं उसको
बहुत मासूम ठहरी वो
गगन जितना वो ऊँची है
समन्दर से है गहरी वो
वही तकदीर अब मेरी
बहुत तन्हा रहा था मैं
मेरी है आबरू वो अब
दुशाला हो गया घर में।