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हत्यारे से निवेदन / संजय शाण्डिल्य

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मुझे मत मारो
आज जब चल रहा था घर से
तो पता नहीं था तुम मिल जाओगे

मुझे तो लगता ही नहीं था
कोई मार भी सकता है मुझे
कैसी ग़लतफ़हमी में मैं जी रहा था

जब निकल रहा था घर से
तो बेटे ने कहा था –
पापा, आज लौटकर मेला ले चलना
पत्नी ने कहा था –
आओगे तो आटा लेते आना
पिताजी चावल नहीं, रोटी खाते हैं
भाई ने कहा था –
आकर अपनी नई कविताएँ फ़ाइनल करके
सभी अच्छी पत्र-पत्रिकाओं में भेज दीजिए
संग्रह आने से पहले
कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं में छा जानी चाहिए

देखो
मैंने किसी को नहीं बताया है
कि मेरे जाने के बाद
वे कहाँ-कहाँ मेरा पैसा खोजेंगे

मुझे बस एक मौक़ा दो
मैं बहुत जल्द यह सब कर लूँगा
मैं यह पूछूँगा भी नहीं
कि भाई, तुम मार क्यों रहे हो मुझे

मैं जानता हूँ
मैं लिखता हूँ
जानता हूँ
तुम्हारे ख़िलाफ़ हूँ
जानता हूँ
तुम सरकार के आदमी हो

भरोसा रखो
और मुझ - जैसे आदमी पर
तुम्हें भरोसा रखना चाहिए
मुझे स्वयं के जाने का तनिक भी भय नहीं
पर जो बचा हुआ है
उसके बिलट जाने का बहुत भय है

आज छोड़ दो
बहुत जल्द तुम्हारे सामने
अपना सीना लेकर मैं उपस्थित हो जाऊँगा ।