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हत्या और विनय / सुधा ओम ढींगरा

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मैं एक नन्हा सा स्पंदन हूँ
मुझ पर यह सितम क्यों......?
स्वंम आया नहीं,
लाया गया हूँ,
फिर यह ज़ुल्म क्यों......?
पालने की जगह
कूड़ादान दिया.

सोचा तो होता
खून के सैलाब से उभरा
कुत्तों का सामना कैसे करूँगा.....?
खड़े हैं तैयार जो नोचनें को मुझे
अभी आँख भी नहीं खुली मेरी.

प्यार की जगह,
तिरस्कार क्यों?
कहीं ऐसा न हो
हवस का कलंक बन
आँचल से तेरे चिपक जाऊँ
उठा ना सको सिर
फिर समाज में तुम कभी.

सम्भालो मुझे
माँ........
दाग दामन का ना बन
चाँद माथे का बन चमकूँ.