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हद में रहो / वार्सन शियर / राजेश चन्द्र

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हद में रहो,
मेरी हथेली की, मेरी परछाईं की,
मत करो कोशिश बड़े बनने की
मेरी उस सोच से जो तुम्हारे बारे में है,

मत बनना उससे अधिक सुन्दर
जितना कि स्वीकार कर सकूँ मैं,
उतना ही मानवीय होने की सोचना
जितने की अनुमति देने के लिये राज़ी रहूँ मैं
और चुप रहा करो,
बहुत तेज़ बोलते हो तुम,
तुम्हारा अनस्तित्व तक भरा है कोलाहल से ।

लगाम दो अपने सपनों को,
अपनी आवाज़ को, अपने बालों को,
अपनी त्वचा को विश्राम दो,
विश्राम दो अपने विस्थापन को,
लगाम लगाओ अपनी लालसा, अपने रंगों पर,
रोक लो अपने क़दमों को, अपनी आँखों को भी ।

किसने कहा कि तुम घूर सकते हो मुझे लगातार इस तरह ?
किसने कहा कि जी सकते हो तुम बग़ैर अनुमति के ?
तुम क्यों हो यहाँ पर अब भी ?
शर्म से गड़ क्यों नहीं जा रहे हो तुम ?
मैं सोचती हूँ अक्सर तुम्हारे बारे में ।

तुम काँप उठते हो ।
तुम टहलने लग जाते हो कमरे के भीतर
और बदलने लगता है तापमान ।
मैं झुक जाती हूँ और क़रीब-क़रीब
स्वीकार कर लेती हूँ तुम्हें
एक इनसान के तौर पर ।

किन्तु, नहीं ।
हमारे आसपास तो बचा ही नहीं है वह ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र