Last modified on 25 जून 2019, at 18:34

हद से बाहर निकल भी सकती है / जंगवीर सिंह 'राकेश'

सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:34, 25 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जंगवीर सिंह 'राकेश' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हद से बाहर निकल भी सकती है
आग पानी पे चल भी सकती है

अस्ल किरदार मर चुके हैं सब
अब कहानी बदल भी सकती है

प्यास इस दर्जा है लबों पे मिरे
एक दरिया निगल भी सकती है

उन दरख़्तों के साये में हूँ, मैं
जिनसे आँधी निकल भी सकती है

बे-वजह मैं उदास रहने लगा
फ़ैसला वो बदल भी सकती है

बात दिल की है जानता हूँ 'वीर'
'हां' मगर बात टल भी सकती है