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"हनुमानबाहुक / भाग 7 / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर

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दूत रामरायको, सपूत पूत बयको,
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'''दूत रामरायको, सपूत पूत बायको,'''
समत्थ हाथ पायको सहाय असहायको।
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'''समत्थ हाथ पायको सहाय असहायको।'''
बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत,
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'''बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत,'''
रावन सो भट भयो मुठिकाके घायको॥  
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'''रावन सो भट भयो मुठिकाके घायको॥'''
एते बड़े साहेब समर्थको निवाजो आज,
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'''एते बड़े साहेब समर्थको निवाजो आज,'''
सीदत सुसेवक बचन मन कायको।
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'''सीदत सुसेवक बचन मन कायको।'''
थोरी बाँहपीरकी बड़ी गलानि तुलसीको,
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'''थोरी बाँहपीरकी बड़ी गलानि तुलसीको,'''
कौन पाप कोप, लोप प्रगट प्रभायको॥ 31॥
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'''कौन पाप कोप, लोप प्रगट प्रभायको॥31॥'''
  
भावार्थ - आप राजा रामचन्द्र के दूत, पवनदेवके सत्पुत्र, हाथ-पाँवकें समर्थ और निराश्रितोंके सहायक हैं। आपके सुन्दर यश की कथा विख्यात है, वेद गान करते है और रावण-जैसा त्रिलोकविजयी योद्धा आपके घूँसेकी चोटसे घायल हो गया। इतने बड़े योग्य स्वामी के अनुग्रह करनेपर भी आपका श्रेष्ठ सेवक आज तन-मन-वचनसे दुःख पा रहा है। तुलसीको इस थोड़ी-सी बाहु-पीड़ाकी बड़ी ग्लानि है, मेरे कौन-से पापके कारण वा क्रोधसे आपका प्रत्यक्ष प्रभाव लुप्त हो गया है ?॥ 31॥
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'''भावार्थ''' - आप राजा रामचन्द्र के दूत, पवनदेवके सत्पुत्र, हाथ-पाँवकें समर्थ और निराश्रितोंके सहायक हैं। आपके सुन्दर यश की कथा विख्यात है, वेद गान करते है और रावण-जैसा त्रिलोकविजयी योद्धा आपके घूँसेकी चोटसे घायल हो गया। इतने बड़े योग्य स्वामी के अनुग्रह करनेपर भी आपका श्रेष्ठ सेवक आज तन-मन-वचनसे दुःख पा रहा है। तुलसीको इस थोड़ी-सी बाहु-पीड़ाकी बड़ी ग्लानि है, मेरे कौन-से पापके कारण वा क्रोधसे आपका प्रत्यक्ष प्रभाव लुप्त हो गया है ?॥31॥
  
  
          देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग,  
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'''देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग,'''
                      छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत है।
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'''छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत है।'''
          पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम,
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'''पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम,'''
                      रामदूतकी रजाइ माथे मानि लेत है॥  
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'''रामदूतकी रजाइ माथे मानि लेत है॥'''
      घोर जंत्र मंत्र कूट कपट कुरोग जोग,
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'''घोर जंत्र मंत्र कूट कपट कुरोग जोग,'''
    हनूमान आन सुनि छाड़त निकेत है।
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'''हनूमान आन सुनि छाड़त निकेत है।'''
        क्रोध कीजे कर्मको प्रबोध कीज तुलसीको,
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'''क्रोध कीजे कर्मको प्रबोध कीज तुलसीको,'''
                    सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत है॥ 32॥
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'''सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत है॥32॥'''
  
भावार्थ - देवी,देवता, दैत्य, मनुष्य, मुनि, सिद्ध और नाग आदि छोटे-बड़े जितने जड़-चेतन जीव हैं तथा पूतना, पिशाचिनी, राक्षसी-राक्षस जितने कुटिल प्राणी हैं, वे सभी रामदूत पवन-कुमारकी आज्ञा शिरोधार्य करके मानते है। भीषण यन्त्र-मन्त्र, धोखाधारी, छलबाज और दुष्ट रोगोंके आक्रमण हनुमानजीकी दोहाई सुनकर स्थान छोड़ देते हैं। मेरे खोटे कर्मपर क्रोध कीजिये, तुलसीको सिखावन दीजिये और जो दोष हमें दुःख देते हैं उनका सुधार करिये॥ 32॥
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'''भावार्थ''' - देवी,देवता, दैत्य, मनुष्य, मुनि, सिद्ध और नाग आदि छोटे-बड़े जितने जड़-चेतन जीव हैं तथा पूतना, पिशाचिनी, राक्षसी-राक्षस जितने कुटिल प्राणी हैं, वे सभी रामदूत पवन-कुमारकी आज्ञा शिरोधार्य करके मानते है। भीषण यन्त्र-मन्त्र, धोखाधारी, छलबाज और दुष्ट रोगोंके आक्रमण हनुमानजीकी दोहाई सुनकर स्थान छोड़ देते हैं। मेरे खोटे कर्मपर क्रोध कीजिये, तुलसीको सिखावन दीजिये और जो दोष हमें दुःख देते हैं उनका सुधार करिये॥32॥
  
तेरे बाल बानर जिताये रन रावनसों,
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'''तेरे बाल बानर जिताये रन रावनसों,'''
तेरे घाले जातुधान भये घर-घरके।
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'''तेरे घाले जातुधान भये घर-घरके।'''
तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज,
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'''तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज,'''
सकल समाज साज साजे रघुबरके॥  
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'''सकल समाज साज साजे रघुबरके॥'''
तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत,
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'''तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत,'''
सजल बिलोचन बिरंचि हरि इरके।
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'''सजल बिलोचन बिरंचि हरि इरके।'''
तुलसीके माथेपर हाथ फेरो कीसनाथ,
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'''तुलसीके माथेपर हाथ फेरो कीसनाथ,'''
देखिये न दास दुखी तोसे कनिगरके॥ 33॥
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'''देखिये न दास दुखी तोसे कनिगरके॥33॥'''
  
भावार्थ - आपके बलने युद्धमें वानरोंको रावण से जिताया और आपके ही नष्ट करनेसे राक्षस घर-घरके (तीन-तेरह) हो गये। आपके ही बल से राजा रामचन्द्रजीने देवताओंका सब काम पूरा किया और आपने ही रघुनाथजीके समाजका सम्पूर्ण साज सजाया। आपके गुणोंका गान सुनकर देवता रोमांचित होते है और ब्रह्मा,विष्णु, महेशकी आँखोंमें जल भर आता है। हे वानरोंके स्वामी ! तुलसी के माथेपर हाथ फेरिये, आप-जैसे अपनी मर्यादाकी लाज रखनेवालोंके दास कभी दुखी नहीं देखे गये॥ 33॥
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'''भावार्थ''' - आपके बलने युद्धमें वानरोंको रावण से जिताया और आपके ही नष्ट करनेसे राक्षस घर-घरके (तीन-तेरह) हो गये। आपके ही बल से राजा रामचन्द्रजीने देवताओंका सब काम पूरा किया और आपने ही रघुनाथजीके समाजका सम्पूर्ण साज सजाया। आपके गुणोंका गान सुनकर देवता रोमांचित होते है और ब्रह्मा,विष्णु, महेशकी आँखोंमें जल भर आता है। हे वानरोंके स्वामी ! तुलसी के माथेपर हाथ फेरिये, आप-जैसे अपनी मर्यादाकी लाज रखनेवालोंके दास कभी दुखी नहीं देखे गये॥33॥
  
पालो तेरे टुकको परेहू चूक मूकिये न,
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'''पालो तेरे टुकको परेहू चूक मूकिये न,'''
कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये।
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'''कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये।'''
भोरानाथ भोरेही सरोष होत थोरे दोष,
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'''भोरानाथ भोरेही सरोष होत थोरे दोष,'''
पोषि तोषि थापि आपनो न अवडेरिये॥  
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'''पोषि तोषि थापि आपनो न अवडेरिये॥'''
अंबु तू हौं अबुचर, अंब तू हौ डिंभ,सो न,
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'''अंबु तू हौं अबुचर, अंब तू हौ डिंभ,सो न,'''
बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये।
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'''बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये।'''
बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि,
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'''बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि,'''
तुलसीकी बाँह पर लामी लूम फेरिये॥ 34॥
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'''तुलसीकी बाँह पर लामी लूम फेरिये॥34॥'''
  
भवार्थ - आपके टुकड़ोंसे पला हूँ, चूक पड़नेपर भी मौन न हो जाइये। मैं कुमार्गी दो कौड़ीका हूँ, पर आप अपनी ओर देखिये। हे भोलानाथ ! अपने भोलेपन से आप थोड़े दोषसे रूष्ट हो जाते हैं, सन्तुष्ट होकर मेरा पालन करके मुझे बसाइये, अपना सेवक समझकर दुर्दशा न कीजिये। आप जल हैं तो मैं मछली हूँ, आप माता है तो मैं छोटा बालक हूँ, देरी, न कीजिये, मुझको आपका ही सहारा है। बच्चेको व्याकुल जानकर प्रेमकी पहचान करके रक्षा कीजिये, तुलसीकी बाँहपर अपनी लंबी पूँछ फेरिये (जिससे पीड़ा निर्मूल हो जावे)॥ 34॥
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'''भावार्थ''' - आपके टुकड़ोंसे पला हूँ, चूक पड़नेपर भी मौन न हो जाइये। मैं कुमार्गी दो कौड़ीका हूँ, पर आप अपनी ओर देखिये। हे भोलानाथ ! अपने भोलेपन से आप थोड़े दोषसे रूष्ट हो जाते हैं, सन्तुष्ट होकर मेरा पालन करके मुझे बसाइये, अपना सेवक समझकर दुर्दशा न कीजिये। आप जल हैं तो मैं मछली हूँ, आप माता है तो मैं छोटा बालक हूँ, देरी, न कीजिये, मुझको आपका ही सहारा है। बच्चेको व्याकुल जानकर प्रेमकी पहचान करके रक्षा कीजिये, तुलसीकी बाँहपर अपनी लंबी पूँछ फेरिये (जिससे पीड़ा निर्मूल हो जावे)॥34॥
  
घेरि लियो रोगनि कुजोगनि कुलोगनि ज्यौं,
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'''घेरि लियो रोगनि कुजोगनि कुलोगनि ज्यौं,'''
बासर जलद घन घटा धुकि धाई है।
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'''बासर जलद घन घटा धुकि धाई है।'''
बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस,
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'''बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस,'''
रोष बिनु दोष, धूम-मूल मलिनाई है॥  
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'''रोष बिनु दोष, धूम-मूल मलिनाई है॥'''
करूनानिधान हनुमान महाबलवान,  
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'''करूनानिधान हनुमान महाबलवान,'''
हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौजैं तौं उड़ाई।
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'''हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौजैं तौं उड़ाई।'''
खायो हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि,
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'''खायो हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि,'''
केसरीकिसोर राखे बीर बरिआई है॥ 35॥
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'''केसरीकिसोर राखे बीर बरिआई है॥35॥'''
 
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भावार्थ - रोगों, बुरे योगों और दुष्ट लोगोंने मुझे इस प्रकार घेर लिया है जैसे दिनमें बादलोंका घना समूह झपट-कर आकाशमें दौड़ता है। पीड़ारूपी जल बरसाकर इन्हों ने क्रोध करके बिना अपराध यशरूपी जवासेको अग्निकी तरह झुलसकर मूच्छित कर दिया। हे दयानिधान महाबलवान् हनुामनजी ! आप हँसकर निहारिये और ललकारकर विपक्षीकी सेनाको अपनी फूंक से उडा दीजीये। हे केशरीकिशोर वीर तुलसी को कुरोगरूपी निर्दय राक्षसने खा लिया था, आपने जोरावरीसे मेरी रक्षा की है॥ 35॥
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'''भावार्थ''' - रोगों, बुरे योगों और दुष्ट लोगोंने मुझे इस प्रकार घेर लिया है जैसे दिनमें बादलोंका घना समूह झपट-कर आकाशमें दौड़ता है। पीड़ारूपी जल बरसाकर इन्हों ने क्रोध करके बिना अपराध यशरूपी जवासेको अग्निकी तरह झुलसकर मूच्छित कर दिया। हे दयानिधान महाबलवान् हनुामनजी ! आप हँसकर निहारिये और ललकारकर विपक्षीकी सेनाको अपनी फूंक से उडा दीजीये। हे केशरीकिशोर वीर तुलसी को कुरोगरूपी निर्दय राक्षसने खा लिया था, आपने जोरावरीसे मेरी रक्षा की है॥35॥
 
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16:22, 15 मई 2015 के समय का अवतरण

दूत रामरायको, सपूत पूत बायको,
समत्थ हाथ पायको सहाय असहायको।
बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत,
रावन सो भट भयो मुठिकाके घायको॥
एते बड़े साहेब समर्थको निवाजो आज,
सीदत सुसेवक बचन मन कायको।
थोरी बाँहपीरकी बड़ी गलानि तुलसीको,
कौन पाप कोप, लोप प्रगट प्रभायको॥31॥

भावार्थ - आप राजा रामचन्द्र के दूत, पवनदेवके सत्पुत्र, हाथ-पाँवकें समर्थ और निराश्रितोंके सहायक हैं। आपके सुन्दर यश की कथा विख्यात है, वेद गान करते है और रावण-जैसा त्रिलोकविजयी योद्धा आपके घूँसेकी चोटसे घायल हो गया। इतने बड़े योग्य स्वामी के अनुग्रह करनेपर भी आपका श्रेष्ठ सेवक आज तन-मन-वचनसे दुःख पा रहा है। तुलसीको इस थोड़ी-सी बाहु-पीड़ाकी बड़ी ग्लानि है, मेरे कौन-से पापके कारण वा क्रोधसे आपका प्रत्यक्ष प्रभाव लुप्त हो गया है ?॥31॥


देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग,
छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत है।
पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम,
रामदूतकी रजाइ माथे मानि लेत है॥
घोर जंत्र मंत्र कूट कपट कुरोग जोग,
हनूमान आन सुनि छाड़त निकेत है।
क्रोध कीजे कर्मको प्रबोध कीज तुलसीको,
सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत है॥32॥

भावार्थ - देवी,देवता, दैत्य, मनुष्य, मुनि, सिद्ध और नाग आदि छोटे-बड़े जितने जड़-चेतन जीव हैं तथा पूतना, पिशाचिनी, राक्षसी-राक्षस जितने कुटिल प्राणी हैं, वे सभी रामदूत पवन-कुमारकी आज्ञा शिरोधार्य करके मानते है। भीषण यन्त्र-मन्त्र, धोखाधारी, छलबाज और दुष्ट रोगोंके आक्रमण हनुमानजीकी दोहाई सुनकर स्थान छोड़ देते हैं। मेरे खोटे कर्मपर क्रोध कीजिये, तुलसीको सिखावन दीजिये और जो दोष हमें दुःख देते हैं उनका सुधार करिये॥32॥

तेरे बाल बानर जिताये रन रावनसों,
तेरे घाले जातुधान भये घर-घरके।
तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज,
सकल समाज साज साजे रघुबरके॥
तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत,
सजल बिलोचन बिरंचि हरि इरके।
तुलसीके माथेपर हाथ फेरो कीसनाथ,
देखिये न दास दुखी तोसे कनिगरके॥33॥

भावार्थ - आपके बलने युद्धमें वानरोंको रावण से जिताया और आपके ही नष्ट करनेसे राक्षस घर-घरके (तीन-तेरह) हो गये। आपके ही बल से राजा रामचन्द्रजीने देवताओंका सब काम पूरा किया और आपने ही रघुनाथजीके समाजका सम्पूर्ण साज सजाया। आपके गुणोंका गान सुनकर देवता रोमांचित होते है और ब्रह्मा,विष्णु, महेशकी आँखोंमें जल भर आता है। हे वानरोंके स्वामी ! तुलसी के माथेपर हाथ फेरिये, आप-जैसे अपनी मर्यादाकी लाज रखनेवालोंके दास कभी दुखी नहीं देखे गये॥33॥

पालो तेरे टुकको परेहू चूक मूकिये न,
कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये।
भोरानाथ भोरेही सरोष होत थोरे दोष,
पोषि तोषि थापि आपनो न अवडेरिये॥
अंबु तू हौं अबुचर, अंब तू हौ डिंभ,सो न,
बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये।
बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि,
तुलसीकी बाँह पर लामी लूम फेरिये॥34॥

भावार्थ - आपके टुकड़ोंसे पला हूँ, चूक पड़नेपर भी मौन न हो जाइये। मैं कुमार्गी दो कौड़ीका हूँ, पर आप अपनी ओर देखिये। हे भोलानाथ ! अपने भोलेपन से आप थोड़े दोषसे रूष्ट हो जाते हैं, सन्तुष्ट होकर मेरा पालन करके मुझे बसाइये, अपना सेवक समझकर दुर्दशा न कीजिये। आप जल हैं तो मैं मछली हूँ, आप माता है तो मैं छोटा बालक हूँ, देरी, न कीजिये, मुझको आपका ही सहारा है। बच्चेको व्याकुल जानकर प्रेमकी पहचान करके रक्षा कीजिये, तुलसीकी बाँहपर अपनी लंबी पूँछ फेरिये (जिससे पीड़ा निर्मूल हो जावे)॥34॥

घेरि लियो रोगनि कुजोगनि कुलोगनि ज्यौं,
बासर जलद घन घटा धुकि धाई है।
बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस,
रोष बिनु दोष, धूम-मूल मलिनाई है॥
करूनानिधान हनुमान महाबलवान,
हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौजैं तौं उड़ाई।
खायो हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि,
केसरीकिसोर राखे बीर बरिआई है॥35॥

भावार्थ - रोगों, बुरे योगों और दुष्ट लोगोंने मुझे इस प्रकार घेर लिया है जैसे दिनमें बादलोंका घना समूह झपट-कर आकाशमें दौड़ता है। पीड़ारूपी जल बरसाकर इन्हों ने क्रोध करके बिना अपराध यशरूपी जवासेको अग्निकी तरह झुलसकर मूच्छित कर दिया। हे दयानिधान महाबलवान् हनुामनजी ! आप हँसकर निहारिये और ललकारकर विपक्षीकी सेनाको अपनी फूंक से उडा दीजीये। हे केशरीकिशोर वीर तुलसी को कुरोगरूपी निर्दय राक्षसने खा लिया था, आपने जोरावरीसे मेरी रक्षा की है॥35॥