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हमको भी आता है / देवेन्द्र कुमार

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पर्वत के सीने से,
झरता है झरना
हमको भी आता है, भीड़ से
गुज़रना ।

        कुछ पत्थर, कुछ रोड़े
        कुछ हंसों के जोड़े
        नींदों के घाट लगे
        कब दरियाई घोड़े

मैना की पाँखें हैं
बच्चों की आँखें हैं
प्यारी है नींद, मगर शर्त है
उबरना ।

        खेतों से, मेड़ों से
        साखू के पेड़ों से
        कुछ ध्वनियाँ आती हैं
        नदी के थपेड़ों से

वर्दी में, सादे में
बाढ़ के इरादे में
आगे-पीछे पानी, देख के
उतरना ।

        गूँगी है, बहरी है
        काठ की गिलहरी है
        आड़ में मदरसे हैं
        सामने कचहरी है

बँधे-खुले अँगों से
भर पाया रंगों से
डालों के सेव हैं, सँभाल के
कुतरना ।