Last modified on 2 मार्च 2015, at 15:58

हमने ऐसा ग़म का मंज़र देखा है / महेश कटारे सुगम

हमने ऐसा ग़म का मंज़र देखा है ।
जैसे फैला हुआ समन्दर देखा है ।।

हद से बाहर देखी है हमने नफ़रत
मगर प्यार को हद के अन्दर देखा है ।

नाटक हमने नहीं किए व्यवहारों में
दिल के अहसासों को छूकर देखा है ।

सब कुछ पाकर भी आख़िर इस दुनिया से
ख़ाली जाते हुए सिकन्दर देखा है ।

जिसने भी संघर्ष किया तूफ़ानों से
उसको लिखते सुगम मुक़द्दर देखा है ।

27-02-2015