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हमरे खेत वैलबो हमरे हमरे मेहनत हमरे रे धान / गंगा प्रसाद राव

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हमरे खेत वैलबो हमरे हमरे मेहनत हमरे रे धान
जान हमरे रे पसीनमा पेॅ उपजै गहुवों रे जान
कोड़ी-कोड़ी मांटी धरती पत्थर फोड़ी बनाबौं रे खेत
जान ओकरा में लगाबौ दलहन-तेलहन रे जान
जेठोॅ के दुपहरिया में छकछक कागजे नांखी जलौं रे जान
जान फाटि रे फटि लहुवे गोड़ोॅ से टपटप चुवै रे जान
पानी मिलै नै खेतोॅ में तेॅ पसीना केॅ ही पटाबौं रे जान
जान हमरे पसीना सें भरलोॅ मालिक के कोठी रे जान
हमरो बुतरू मांग-पात नोची-नोची लै छै सिझाय रे जान
जान वही सिझलोॅ-पकलोॅ सें बनाबै आपनोॅ रे जान
हमरे रे कमैय्या पेॅ बेटां मैलकोॅ के झाड़े सूटी बूटो जान
जान हमरोॅ रे बेटा नंगे रहै छै माघो में भी रे जान
मैलकोॅ के अटारी कोठी उच्चोॅ सरंगोॅ केॅ छुवै रे जान
जान हमरे मड़ैया वर्षा में छर-छर चुवै रे जान
मैलकोॅ के तेॅ कुत्तौ तोशक-तकिया आरौ रजैय्या चाहै रे जान
जान हमरोॅ रे बेटा माघो में गांती लेॅ कपसै छै रे जान
‘गंगा’ कवि हकारोॅ दै छै दुखिया सब केॅ एकजुट होयलेॅ जान
जान हेनोॅ जुग पर बज्जड़ गिरै जे लै छै दुखिया रोॅ जान