Last modified on 18 सितम्बर 2017, at 19:34

हमरोॅ देशः गुजरलोॅ वेश, खण्ड-09 / मथुरा नाथ सिंह ‘रानीपुरी’

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:34, 18 सितम्बर 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चंड, मंुडआ शुंभ निशुंभ के
जौने मारकै घेरी
आतंकवाद के खतम करै मेॅ
करै छै कैहनेॅ देरी? ।।65।।

डर लागै धर्मोॅ के आर्बे
भगतोॅ के देखी धंधा
डाँटी डपटी, झुट्ठे बोली
रोज उघाबै चंदा ।।66।।

कोय रे चोर, कोइये लफंगा
काम करै बेढंा
कौनी घाटें मौत उतारी
रोज नहाबै गंगा! ।।67।।

आयकोॅ चमत्कार तेॅ देखोॅ
कत्ते करै कमाल
डेगे-डेगे, जन्नेॅ-तन्नेॅ
सकठे लगै दलाल ।।68।।

चारो दिश छै घोर अन्हरिया
लंपट, चोर, चोहाड़
गरजै-भूकै, धुरा उड़ावै
उछलै-कूदै साँढ़ ।।66।।

सुरसा रंग ई देह बढ़ावै
करै छै हरदम ठठ्ठा
अपन्है डेगें रोजे नापै
बीघा, धूर आरो कट्ठा ।।70।।

सगरो चिकरा गरजी देखी
सबके माथा ठनकै छै
उछलै-कूदै भितरे-भीतर
के रे कहाँ नै सनकै छै ।।71।।

कुर्सी-कुर्सी मेॅ घुसखोरी
देशो-भक्त लफंगा रे
देखोॅ कैहनोॅ पुड़ियाफाड़ी
खाय छै रोज तिरंगा रे ।।72।।