भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमारा मक़सद अगर सफ़र है तवील करना / राज़िक़ अंसारी
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:40, 20 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राज़िक़ अंसारी }} {{KKCatGhazal}} <poem> हमारा म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हमारा मक़सद अगर सफ़र है तवील करना
शुमार ऐसे में किस लिए संगे मील करना
अगर मोहब्बत के केस में हो हमारी पेशी
हमारी मानो तो अपने दिल को वकील करना
हमारे घर में जिधर से नफ़रत का दाख़िला है
बहुत ज़रूरी है ऐसे रस्तों को सील करना
दिलों के रिश्तों को एक साज़िश का नाम दे कर
है उनका मक़सद मोहब्बतों को ज़लील करना
हमें पता है तुम्हें जो ये सब सिखा रहा है
अगर सुनो सच तो पेश झूटी दलील करना