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हमारी तरह हुरूफ़-ए-जुनूँ के जाल में आ / रफ़ीक राज़
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हमारी तरह हुरूफ़-ए-जुनूँ के जाल में आ
कभी तो जलवा-गह-ए-नून-जीम-दाल में आ
अभी तो गर्द ज़माने की उड़ रही है यहाँ
अभी न मिस्ल-ए-सबा कूचा-ए-ख़याल में आ
गुज़र न जाए कहीं ख़ामुशी में ये शब भी
मुराक़िबा तो हुआ अब ज़रा जलाल में आ
तुझे भी आज कोई रूप बख़्शता ही चलूँ
तू संग है तो मिरे दस्त-ए-बा-कमाल में आ
यहाँ ज़वाल का मंज़र भी ला-ज़वाल नहीं
यक़ीं नहीं तो बयाबान-ए-माह-ओ-साल में आ