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हमारी तुम्हारी सभी की व्यथा / ब्रह्मजीत गौतम

हमारी तुम्हारी सभी की व्यथा
समेटे हुए है ग़ज़ल सर्वथा

महल का सफ़र छोड़कर आजकल
ग़ज़ल कह रही है कुटी की कथा

सचाई का बल पास जिसके नहीं
कहे किस तरह वह यथा को तथा

अभी आप आये, अभी चल दिये
कहाँ है उचित प्रेम की ये प्रथा

सियासत में रहकर ‘बड़े’ बन गये
न लें आप इस बात को अन्यथा

सगा मित्र ही देगा धोखा मुझे
कभी स्वप्न में भी ये सोचा न था

उसे ‘जीत’ नवनीत कैसे मिले
हमेशा ही जिसने हो पानी मथा