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हमारी भावनाएँ / अलका सर्वत मिश्रा

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देखो हमारी भावनाएं अब भावनाएं नहीं रहीं ये बन गयी हैं बिफरा नाग अब तो ज़रा सा छेड़ना घातक ही होगा तुम्हारे लिए ! __ बहुत सहे हैं आघात पर आघात किन्तु प्रत्याघात से ,दूर ही रहे हम आज ये गांधीवादी राह विफल हो गयी लगती है !! __हम इन्तेजार ही करते रह गये कि कभी तुम्हें भी हमारी भूख का एहसास हो, हमारी प्यास सुखा दे तुम्हारे अधरों को, हमारी तकलीफ पर तुम आह भरो हमारी खुशियों में तुम भी वाह करो !!! __अब ख़त्म हो चुकी हैं इन्तेजार की घड़ियाँ आर-पार का संघर्ष है ये , __हमारे हाथों में तलवार ही शायद तुम्हें पसंद हो ! ___पहले बता दिया होता हम शान्तिपसंद / प्रेम के पुजारी लहू बहाना भी जानते हैं .