भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमारी माँ अगर होती / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:15, 30 जून 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमारी माँ अगर होती, हमारे साथ में पापा|

फटकने दुख नहीं देती, हमारे पास में पापा||

सुबह उठकर हमें वह दूध, हँस हँस कर पिलाती थी|

डबल रोटी या बिस्कुट, साथ में, हमको खिलाती थी|

अगर होती सुबह से ही, कभी की उठ चुकी होती|

हमें रहने नहीं देती, कभी उपवास में पापा|

 

हमारे स्वप्न जो होते, उन्हें साकार करती थी|

किसी भी और माता से, अधिक वह प्यार करती थी|

नहीं अब साथ में तो यह, जहां बेकार लगता है|

नहीं अब कुछ बचा बाकी, हमारे हाथ में पापा|

 

सदा सोने से पहले लोरियाँ, हमको सुनाती थी|

इशारे से कभी चंदा, कभी तारे दिखाती थी|

हमें जब है जरूरत है, प्यार के बादल बरसने की|

पड़ा है किस तरह सूखा भरी बरसात में पापा|

 

हमें यूं छोड़कर जाने की, उसको क्या जरूरत थी|

उसी के साथ जीवन भर, हमें रहने की हसरत थी|

हमें लगता किसी ने, यूं नज़र हमको लगाई है|

छुपा बैठा हमारे घर, हमारी घात में पापा|