Last modified on 14 अक्टूबर 2017, at 14:52

हमारी हर चुप्पी में हज़ारों सवाल है / राकेश पाठक

हमारी हर चुप्पी में हज़ारों सवाल है
हमारी हर चुप्पी किसी के आंखों का इम्तहान है
हमारी हर चुप्पी हमारे ज़मीर पर संघात है
हमारी हर चुप्पी उस बेबसी की परीक्षा है
हमारी हर चुप्पी की कीमत थोड़े से आँसू है
हमारी हर चुप्पी सवालों के घेरे में हैं
हमारी हर चुप्पी का मूल्य किसी की कलम चुकाती है.
हमारी हर चुप्पी की कीमत तय है
कलमों के गिरहबन्द में उसी चुप्पी का रहस्य है
हमारी हर आवाज पर पहरेदारों के साये है
आवाजें सींकचों में बंद है
कलमें हथकड़ियों से बांध दी गयी है
हमारी चीखें वंदे मातरम में गुम हैं
हमारी शोर बहुत कीमती है
हिटलर की हँसी की तरह.
कत्लगाहों के शोर में अजीब सी कलम की चीखें हैं
अखबारों की कतरनों के बीच दम तोड़ती कलम है
भयग्रस्त हर एक उठाया गया हाथ हैं
गूंगों के विपक्ष में महाभारत के पात्र है
दम तोड़ते बच्चे में एकांगी मौत का नृत्य है
गुनाहों के देवता की गवाह स्याह काले हो गए पूर्व ही
न्याय की कागजों पर स्याही फेर दी गयी
और हम चुप रहे उस सभ्यता के ख़िलाफ़
जब बोलना था तब भी चुप रहे उस व्यवस्था के खिलाफ
कल हम चुप हो जाएंगे
या कर दिए जाएंगे
अगर हम आज भी चुप रह जाएंगे !