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हमारे नितम्ब उनके जैसे नहीं हैं… / आर्थर रैम्बो / मदन पाल सिंह

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हमारे नितम्ब उनके जैसे नहीं हैं, अक्सर देखा है मैंने
आदमियों को झाड़ियों की आड़ में कपड़े उतारते हुए
और मैंने उन्हें देखा है नग्न, बिना झिझक के पानी में छपाके लगाते :
जैसे होते हैं खुशमिज़ाज,सरल बचपन में ।

अध्ययन किया है मैंने अपने नितम्बों की आकृति और व्यवहार का
कड़े और अक्सर जर्द हमारे नितम्ब, नीचे उलझे बालों के अस्तर से घिरे
पर औरतों के तो हैं जुदा
झीरी में बड़े सलोने रोयें, नितम्ब रेशम से नरम और फले-फूले
वहाँ होता है एक दिलकश, सादगी भरा गड्ढा
जैसे मुदित देवियों-परियों के गालों में पड़ते गुल
जिन्हें देखते हैं हम धार्मिक चित्रों में।

इस तरह से अनावृत हो खोजते हैं शान्ति और आनन्द भरा सकून
अपना सिर शानदार अंग की ओर घुमाते
हम हो जाते हैं आज़ाद दोनों ही
नि:शब्द आनन्द को सीत्कार-भरा स्वर देने के लिए !

मूल फ़्रांसीसी भाषा से अनुवाद : मदन पाल सिंह