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{{KKRachna
|रचनाकार=जहीर कुरैशी
|अनुवादक=|संग्रह=}} {{KKCatGhazal}}<poem>हमारे भय पे पाबंदी लगाते हैं <br>अंधेरे में भी जुगनू मुस्कुराते हैं <br><br>
बहुत कम लोग कर पाते हैं ये साहस <br>चतुर चहरों चेहरों को आईना दिखाते हैं <br><br>
जो उड़ना चाहते हैं उड़ नहीं पाते <br>वो जी भर कर पतंगों को उड़ाते हैं <br><br>
नहीं माना निकष हमने उन्हें अब तक <br>मगर वो रोज़ हमको आज़माते हैं <br><br>
उन्हें भी नाच कर दिखलाना पड़ता है <br>जो दुनिया भर के लोगों को नचाते हैं <br><br>
बहुत से पट कभी खुलते नहीं देखे <br>यूँ उनको लोग अक्सर खटखटाते हैं <br><br>
हमें वो नींद में सोने नहीं देते <br>
हमारे स्वप्न भी हम को जगाते हैं
</poem>
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