भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमें जो लोग दिनभर जांचते हैं / राज़िक़ अंसारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमें जो लोग दिनभर जांचते हैं
चलो उनका करेक्टर जांचते हैं

हमारे ज़ब्त की हद है कहां तक
लगा कर ज़ख़्म दिल पर जांचते हैं

वफ़ादारी कहाँ पर जांचना थी
वफ़ादारी कहाँ पर जांचते हैं

हमारे साथ लाशें तो नहीं हैं
चलो सूई चुभा कर जांचते हैं

हवा इस बार किस के हक़ में होगी
चलो मौसम का तेवर जांचते हैं