भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमें हमसे ही मिलवाया गया है / सोनरूपा विशाल
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:33, 21 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सोनरूपा विशाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
समझते थे जो समझाया गया है
हमें हमसे ही मिलवाया गया है
जो बोलें उसको पहले तोल लें हम
हमें व्यापार सिखलाया गया है
कभी एहसान कोई कर गया है
बराबर याद दिलवाया गया है
हमारे हाथ ख़ाली रह गए फिर
हमें बच्चों सा बहलाया गया है
था जब मौसम सही रोका गया तब
हमें आँधी में दौड़ाया गया है
हमारे नाम के हिस्से को क्यूँ कर
किसी के नाम लिखवाया गया है