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हमें ही जतन से जलाने भी होंगे / अशोक रावत
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हमें ही जतन से जलाने भी होंगे,
दिये आंधियों से बचाने भी होंगे.
जहाँ होगा हद से ज़ियादाअँधेरा,
वहीं रौशनी के ठिकाने भी होंगे.
यूँ ही कोई पत्थर नहीं फेंकता है,
यहाँ कुछ हमारे दिवाने भी होंगे.
कहाँ सोचता है मोहब्बत में कोई,
कि रुसवाई होगी, फसाने भी होंगे.
अगर हौसले को बचा ले गए हम,
मुसीबत भरे दिन सुहाने भी होंगे.
वो अश्कों में डूबे, तुम्हारे सभी ख़त,
हमें क्या पता था, जलाने भी होंगे.
दरख्तों की सीरत सभी जानते हैं,
परिंदों में तो कुछ बिराने भी होंगे.
लबों पर हंसी को सजाना भी होगा,
हमें अश्क अपने छुपाने भी होंगे.