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"हम अपने दुख को गाने लग गए हैं / मदन मोहन दानिश" के अवतरणों में अंतर
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00:27, 19 मार्च 2011 के समय का अवतरण
हम अपने दुख को गाने लग गए हैं
मगर इसमे ज़माने लग गए हैं
किसी की तरबियत का है करिश्मा
ये आँसू मुस्कुराने लग गए हैं
कहानी रुख़ बदलना चाहती है
नए किरदार आने लग गए हैं
ये हासिल है मेरी ख़ामोशियों का
कि पत्थर आज़माने लग गए हैं
मेरी तन्हाइयाँ भी उड़ न जाएँ
परिंदे आने-जाने लग गए हैं
जिन्हें हम मंज़िलों तक ले के आए
वही रस्ता बताने लग गए हैं
शराफ़त रंग दिखलाती है दानिश
सभी दुश्मन ठिकाने लग गए हैं