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हम कब तक उसको माफ़ करें अब आर पार हो जाने दो / डी. एम. मिश्र
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हम कब तक उसको माफ़ करें अब आर पार हो जाने दो
गर जंग अमन की खा़तिर है तो एक बार हो जाने दो
जो घर में अपने दुबके हैं वो सीना तान के निकलेंगे
बस एक बार ताक़त का मेरी ऐतबार हो जाने दो
तुम हम से कटे -कटे फिरते फिर कैसे बात बढे़ आगे
हम प्यार मुहब्बत वाले हैं तो आँखें चार हो जाने दो
हम मौन साधकर बैठे हैं इसका मतलब बेफिक्र नहीं
थोडा़ सा उसके तन मन को भी बेकरार हो जाने दो
हम कैसे उससे बात करें वह बहका-बहका फिरता है
कुछ ठोकर खाने दो उसको कुछ समझदार हो जाने दो
मौला ने हमें जब बख़्शा है तो पूरा लुत्फ़ उठायेंगे
कश्मीर भी इक दिन जाना है रुत लालाज़ार हो जाने दो