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"हम तन्हा और यह सफ़र तन्हा/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर

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हम तन्हा और यह सफ़र तन्हा
 
हम तन्हा और यह सफ़र तन्हा
तुझे ढूँढ़ने वाली यह नज़र तन्हा
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तुझे ढूँढ़े जो वह 'नज़र' तन्हा
  
यूँ तो तेरी तस्वीर है दिल में मगर
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यूँ तो तेरी तस्वीर है दिल में
फिर भी यह दीवारो-दर तन्हा
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फिर भी यह दीवारो-दर<ref>दीवारें और दरवाज़े</ref> तन्हा
  
घर में हम हैं और आईना भी है
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घर में हम हैं और आइना भी
बिन तेरे हम दोनों यह घर तन्हा
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बिन तेरे हम दोनों, ये घर तन्हा
  
तुम्हें देखा आज फिर रू-ब-रू, सामने
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तुम्हें देखा आज फिर रू-ब-रू<ref>आमने-सामने</ref>
तुम्हें न दिखा हूँ इस क़दर तन्हा
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तुम्हें न दिखा, हूँ इस क़दर तन्हा
  
बिन तुम्हारे इस तरह तन्हा हूँ
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बिन तुम्हारे कुछ यूँ तन्हा हूँ
जैसे बिन फूलों के कोई शज़र तन्हा
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जैसे बिन फूल के शज़र<ref>पेड़</ref> तन्हा
  
 
बिन तुम्हारे कहीं दिल लगता नहीं
 
बिन तुम्हारे कहीं दिल लगता नहीं
तुम बिन मैं जाऊँ किधर तन्हा
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और मैं अब जाऊँ किधर तन्हा
  
तुम नहीं तो यूँ लगता है मुझको
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तुम नहीं तो यूँ लगता है मुझे
मैं हूँ आज भी शहर-ब-शहर तन्हा
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मैं हूँ आज शहर-ब-शहर<ref>एक शहर से दूसरे शहर तक</ref> तन्हा
  
जलेंगे सारी-सारी रात आज फिर हम
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जलेंगे सारी-सारी रात हम
रहेगी आज फिर रहगुज़र तन्हा
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रहेगी फिर से रहगुज़र<ref>रास्ते</ref> तन्हा
  
गर तेरी यादें न होती तो क्या कहूँ मैं
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गर तेरी यादें हाथ बढ़ातीं
जाता ज़िन्दगी का हर पहर तन्हा
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तो मैं रहता जीवन भर तन्हा
  
दरिया का पानी बाँध दिया है किसी ने
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दरिया का पानी बाँधा किसने
 
बिन पानी हुई यह नहर तन्हा
 
बिन पानी हुई यह नहर तन्हा
  
न चाँद हँसा न खु़र्शीद<ref>सूरज</ref> मुस्कुराया
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न चाँद हँसा, वो खु़र्शीद<ref>सूरज</ref> ढला
तुम बिन यह शामो-फ़ज़िर<ref>शाम और भोर</ref> तन्हा
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तुम बिन हुई शामो-फ़ज़िर<ref>शाम और भोर</ref> तन्हा
  
 
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14:41, 17 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण


लेखन वर्ष: २००४/२०११

हम तन्हा और यह सफ़र तन्हा
तुझे ढूँढ़े जो वह 'नज़र' तन्हा

यूँ तो तेरी तस्वीर है दिल में
फिर भी यह दीवारो-दर<ref>दीवारें और दरवाज़े</ref> तन्हा

घर में हम हैं और आइना भी
बिन तेरे हम दोनों, ये घर तन्हा

तुम्हें देखा आज फिर रू-ब-रू<ref>आमने-सामने</ref>
तुम्हें न दिखा, हूँ इस क़दर तन्हा

बिन तुम्हारे कुछ यूँ तन्हा हूँ
जैसे बिन फूल के शज़र<ref>पेड़</ref> तन्हा

बिन तुम्हारे कहीं दिल लगता नहीं
और मैं अब जाऊँ किधर तन्हा

तुम नहीं तो यूँ लगता है मुझे
मैं हूँ आज शहर-ब-शहर<ref>एक शहर से दूसरे शहर तक</ref> तन्हा

जलेंगे सारी-सारी रात हम
रहेगी फिर से रहगुज़र<ref>रास्ते</ref> तन्हा

गर तेरी यादें हाथ न बढ़ातीं
तो मैं रहता जीवन भर तन्हा

दरिया का पानी बाँधा किसने
बिन पानी हुई यह नहर तन्हा

न चाँद हँसा, न वो खु़र्शीद<ref>सूरज</ref> ढला
तुम बिन हुई शामो-फ़ज़िर<ref>शाम और भोर</ref> तन्हा

शब्दार्थ
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