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हम तुम में डूब जाते / रामस्वरूप 'सिन्दूर'

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हम तुम में डूब जाते, तुम हम में डूब जाते!
सागर जहान-भर के, शबनम में डूब जाते!

कुछ दूसरी न होती संयोग की कहानी,
आंसू से बच निकलते संगम में डूब जाते!

हम जो हैं वो न होते, आंसू जो ये न होते,
सागर की उम्र पा-के उदगम में डूब जाते!

आंसू जो अर्चना से ऊबे, तो मय उठा ली,
गहरे ही डूबना था सरगम में डूब जाते!

‘सिन्दूर’ रुढियों से रिश्ता न तोड़ देते,
इस क्रम में डूब जाते, उस क्रम में डूब जाते!