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हम तुम मोहरे हैं / उर्मिल सत्यभूषण

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मित्र, हम तुम मोहरे हैं
उनके हाथ में।
प्यादे हों या घोड़े
ऊँट या हाथी, राजा या वजीर
हम खुद चलें-हमारी क्या बिसात
ढाई घर की हो-या सीधी-सादी चालें
हमारी किस्मत के खरीदार
निर्धारित करते हैं,
हमारी क्या मजाल, जो सोचें
मिलेगी शह या मात
हम, एक महान षड्यन्त्र
का शिकार होकर भी अनजान
एक दूसरे के प्रतिद्वन्दी बने
सींचते रहे अपने सर्जकों के
ऐशो आराम के स्वप्न
देते स्वयं को घात-प्रतिघात!
मित्र! आओ छेड़ें जिहाद
सामंती स्वपनों के विरुद्ध
चौखट से बाहर आने की
संभावनायें क्षीण सही
मृत तो नहीं।
आओ जिलायें इन्हें
और रोक दें बढ़ते हुये हाथ।
हाथ, वे, बड़े ताकतवर हैं
हमारा अस्तित्व बहुत कमजोर,
बहुत बौना, भले ही हो
किन्तु हमारा शक्तिपुंज है
अपरिमित और अपराजेय
मुट्ठियां कसें और गुंजा दें मंत्र
प्रतिवाद! प्रतिवाद!! प्रतिवाद!!