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हम तोहरा, तूँ हमरा मन में / अशोक द्विवेदी

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जब देखीं भितरी दरपन में
तूँ लउकेलऽ, हमरा जगहा
हम तोहरा, तूँ हमरा मन में !

नीमन बाउर कुछ न बुझाला
रीझत खीझत मन अझुराला
होके बेकल, खिंचि खिंचि जाई
हम तोहरा लसोर चितवन में !
हम तोहरा, तूँ हमरा मन में !

खोलत आँखि तहार सिरिजना
तहरे सुमिरन, तहरे सपना
सूतल जागत तहरे धुन बा
जस पपिहा पिउ पीउ रटन में !
हम तोहरा, तूँ हमरा मन में !

जरत दिया से निकसे जोती
सीपी भीतर बिकसे मोती
तोहसे बिछुड़ि कहाँ जाइब हम
ठौर मिली तोहरे बाँहन में !
हम तोहरा, तूँ हमरा मन में !

जीयत जागत जूझत जिनिगी
कब चढ़ि जाई डाढ़ि के फुनुगी
पता न हमके आगम आपन
कब उड़ि जाइब नील गगन में !
हम तोहरा, तूँ हमरा मन में !