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हम तो इतना जानते हैं / राकेश रंजन

हम किसान हैं बाबू
पृथ्वी और पहाड़ के बाद
हमसे ज़्यादा कौन जानता है
सारस के बारे में

लाल सिर, लम्बी गरदन वाले
सफ़ेद सारस
दुनिया के सबसे कठिन पठारों
और सबसे ऊँचे पहाड़ों को नापकर
वे आते हैं हमारे पास
और हम भी
उनकी राह देखते हैं
कि कब वे आएँ
कब वे हमारे खेतों में उतरें
और आकाश की ओर मुख उठाकर गाएँ
जैसे प्रार्थना

हमारे जीवन में
उनके गुलाबी डैनों की फड़फड़ाहट
घट रही है बाबू
घट रहे हैं
उनके गगनमुखी गान

दुनिया में सारस
और शिकारी
एक साथ नहीं रह सकते बाबू
वैसे ही जैसे एक साथ नहीं रह सकते
दुनिया में झूठ के व्यापार
और हमारे खेत

तुमने खेत देखे हैं न बाबू
किसान के दुख-सुख तो जानते हो न तुम
जानते हो न हम दुख से नहीं डरते
नहीं डरते जेठ या पूस से
हम धोखे से डरते हैं बाबू
तुम्हारी कृतघ्नता से

सरकार की तो तुमै जानो
हम तो सारस को जानते हैं
और इतना जानते हैं
कि सारस बचे
तो खेत भी बच जाएँ शायद
और खेत बचे
तो हमौं बचै जाएँगे हँसके न रोके
बाक़ी सरकार का क्या है
ससुरी ना ही बचे तो जान छूटे !