भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम तो एक बार उसके हो जायें / अमजद हैदराबादी

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:18, 4 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम तो एक बार उसके हो जायें।
वो हमारा हुआ, हुआ, न हुआ॥

ढूँढ़ता हूँ मैं हर नफ़स<ref>सांस</ref> उसको।
एक नफ़स<ref>लम्हा</ref> मुझसे जो जुदा न हुआ॥

क्या मिला वहदते-वजूदी से<ref>एक-ईश्वरवाद से</ref>?
बन्दा, बन्दा रहा, खुदा न हुआ॥

बन्दगी में यह किब्रयाई<ref>अभिमान</ref> है?
ख़ैर गुज़री कि मैं ख़ुदा न हुआ॥

शब्दार्थ
<references/>