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हम तो नशेमन फूँक के अपना ले के लुकाठा हाथ चले / कांतिमोहन 'सोज़'

हम तो नशेमन फूंक के अपना लेके लुकाठा हाथ चले ।
आग लगे उसके छप्पर को अब जो हमारे साथ चले ।।

अंगड़ाई लेता है दिल में छोटा सा ये मनसूबा
नाम हमारा रौशन हो जब आगज़नी की बात चले ।

अहले-जनूं पे हँसनेवालों कैसे भला तुम समझोगे
बज़्मे-तरब में क्यूँ हम लेकर ज़ख़्मों की सौग़ात चले ।

जलते रहेंगे रेज़ा-रेज़ा करते रहेंगे नज़्र लहू
चाहे क़यामत तक दुनिया में ग़म की अन्धेरी रात चले ।

ज़ाहिर है ये रस्म क़दीमी दुनिया से उठ जाएगी
सरबुलन्द आए महफ़िल में उठकर कम-औक़ात चले ।

सोज़ से यारो सुर्खिए-मय का सुर्खलबी का ज़िक्र करो
नूरे-सहर नायाब है जब तक नूरे-सहर की बात चले ।।

29 मार्च 1987