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हम त गढ़वळी / धनेश कोठारी

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हम त गढ़वळी छां भैजी

दूर परदेस कखि बि

हम तैं क्यांकि शरम

 

अब त अलग च राज

हमरु अलग च रिवाज

हमरु हिमाला च ताज

देखा ढोल दमौ च बाज

बोली भासा कि पछाण

न्यूत ब्यूंत मा रस्याण

बोला क्यांकि शरम

 

हम त नै जमान कि ढौळ

पर पछाण त वी च

छाळा गंगा पाणि जन

माना पवित्र बि वी च

दुन्या मा च हमरु मान

हम छां अपड़ा मुल्कै शान

न जी क्यांकू भरम

 

हम त नाचदा मण्डेण

रंन्चि झमकदा झूमैलो

बीर पंवाड़ा हम गांदा

ख्यलदा बग्वाळ मा भैलो

द्यब्ता हमरि धर्ति मा

हम त धर्ति का द्यब्तौ कि

हां कत्तै नि भरम

 

ज्यूंद राखला मुल्कै रीत

दूर परदेस कखि बि

नाक नथ बिसार गड़्वा

पौंछी पैजी सजलि तक बि

चदरि सदरि कु लाणु

कोदू झंगोरा कु खाणु

अब कत्तै नि शरम

 

कै से हम यदि पिछनैं छां

क्वी त हम चै बि पिछनै च

धन रे माटी का सपूत

तिन बि बीरता दिखलै च

हम चा दूर कखि बि रौंला

धर्ति अपड़ी नि बिसरौला

सच्चि हम खांदा कसम