भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हम देखेंगे / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (71.236.24.243 (Talk) के संपादनोंको हटाकर Pratishtha के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया)
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
वो दिन कि जिसका वादा है<br>
 
वो दिन कि जिसका वादा है<br>
 
जो लौह-ए-अजल में लिखा है<br>
 
जो लौह-ए-अजल में लिखा है<br>
जब जुल्म o सितम के कोह-ए-गरां<br>
+
जब जुल्म सितम के कोह-ए-गरां<br>
 
रुई की तरह उड़ जाएँगे<br>
 
रुई की तरह उड़ जाएँगे<br>
haम महकूमों के पाँव तले<br>
+
दम महकूमों के पाँव तले<br>
 
जब धरती धड़ धड़ धड़केगी<br>
 
जब धरती धड़ धड़ धड़केगी<br>
और अहल-ए-हकम के सर ऊपर<br>
+
और अहल-ए-हिकम के सर ऊपर<br>
 
जब बिजली कड़ कड़ कड़केगी<br>
 
जब बिजली कड़ कड़ कड़केगी<br>
jab arz-e-khuda ke qaabe se<br>
 
sab but uthwaye jaayenge<br>
 
 
हम अहल-ए-सफा, मरदूद-ए-हरम<br>
 
हम अहल-ए-सफा, मरदूद-ए-हरम<br>
 
मसनद पे बिठाए जाएंगे<br>
 
मसनद पे बिठाए जाएंगे<br>
 
सब ताज उछाले जाएंगे<br>
 
सब ताज उछाले जाएंगे<br>
 
सब तख्त गिराए जाएंगे<br>
 
सब तख्त गिराए जाएंगे<br>
bas naam rahega allah ka<br>
 
jo ghayab bhi hai hazir bhi<br>
 
jo manzar bhi hai naazir bhi<br>
 
utthega anal haq ka naara<br>
 
jo main bhi hoon aur tum bhi ho<br>
 
 
और राज करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा<br>
 
और राज करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा<br>
 
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
 
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो

19:04, 14 नवम्बर 2008 का अवतरण

हम देखेंगे
लाजिम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
जो लौह-ए-अजल में लिखा है
जब जुल्म ए सितम के कोह-ए-गरां
रुई की तरह उड़ जाएँगे
दम महकूमों के पाँव तले
जब धरती धड़ धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हिकम के सर ऊपर
जब बिजली कड़ कड़ कड़केगी
हम अहल-ए-सफा, मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाए जाएंगे
सब ताज उछाले जाएंगे
सब तख्त गिराए जाएंगे
और राज करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो