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हम दोनों / नज़ीर बनारसी

7 bytes added, 01:42, 16 अक्टूबर 2014
कहाँ जाएगी हम दोनों से मंजिल सरकशी <ref>कतरा कर निकल जाना</ref> करके
नया जादह <ref>रास्ता</ref> नई मंजिल बना सकते हैं हम दोनों
’नजीर’ अल्लाह रक्खे इŸोहादे इत्तिहादे बाहमी <ref>आपसी मेल-जोल</ref> कायम
हर इक मुश्किल को अब आसाँ बना सकते हैं हम दोनों
</poem>
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