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हम भारतवासी सब एक हों! / कविता भट्ट

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सतरंगी नव-रश्मियों से

प्राची के ऐसे अभिषेक हों ।

आशाओं का सूरज उगे तो

निर्मल सबके बुद्धि-विवेक हों॥

 
द्वेष त्यागें, उत्थान करें मिल

हम भारतवासी सब एक हों !

 
पात दम्भ के सभी झर जाएँ

ममता -समता सब अतिरेक हों।

नवगीत मधुर खग-कंठ गाएँ

प्रेम-सद्भाव सुमन अनेक हों॥

 
भारत माँ का यशोगान करें

हम भारतवासी सब एक हों ॥

 
क्षुधाएँ शान्त, कंठ हों सिंचित

नव उन्मेष नवल अभिलेख हों।

'कविता' मातृभूमि-सेवा ,धर्म
इसमें निरत धर्म-वर्ण प्रत्येक हों ॥

 
नभ-दिगंत छूने की ललक में

हम भारतवासी सब एक हों!