हम मर रहे हैं बराबर
हर जगह हर समय
उपलब्ध है हमें मारने के लिए
हर तरह के लोग हर जगह
जो मार रहे हैं बेदर्दी से
विलाप भी वही कर रहे हैं
वही हंस रहे हैं
वही रो रहे हैं
बेसरम हैं कोई देख न ले
छुप छुप कर मुंह अपना धो रहे हैं
अन्दर से हँसते हुए लोग हैं
स्वयं को बाहर से मायूस दिखाने वाले
ये रोने वाले ही हैं
बरसात के मौसम में
बारिस का लाभ उठाने वाले
कहाँ चले जाते हैं तब
जब सूखी जमीन पर पड़ते हैं
मर रहे प्राणों के लाले
फूटते हैं पैरों में दिन-ब-दिन
बड़े बड़े दरार उजले उजले छाले
धूप हो, बरसात हो, ठंडी हो
सभी के पास होते हैं
घर अपने और अपने घरौंदे
निकलते हैं बाहर तो
करते हैं सब सलामी
कहलाते हैं उन्हीं द्वारा हम
बस्ती के गंदे लौंडे
निकल जाते हैं हमें गाली देकर
मर रहे होते हैं हम घांस-फूस खाकर
नहीं आता कोई
हाल किसी को सुनाने
आज भी हम मरते हैं जाने अनजाने
कौन करता है उजागर किसके कारनामें
हर तरह तुम्हारे नीचे दबकर
हम मर रहे हैं बराबर
संवेदनशील लोग हैं देखो कैसे
संवेदनाएं खो रहे हैं
देख कर दुर्दशा रुक रुक
सुस्ता सुस्ता कर रो रहे हैं
मर रहे हैं बराबर
हम उनकी देख रेख में
हंसी और आंसू उनके
हम ही ढो रहे हैं