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हम मिथिला गाबि रहल छी / किसलय कृष्ण

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हम मिथिला गाबि रहल छी, हम मिथिला गाबि रहल छी।
इतिहास अपन आँचर में रखने, हम चलिते आबि रहल छी!
हम मिथिला गाबि रहल छी।

उत्तर मुकुट हिमालय, दक्खिन गंगा केर निर्मल तीरे...
चंपक वन पच्छिम दिशि, महानन्दा केर पूरूब में तीरे...
छाती पर कोसी-कमला सँ धन-धान्य केँ पाबि रहल छी...
हम मिथिला गाबि रहल छी।

हम धरनी सँ उपजल सीता, हम कृष्णक बाजल गीता...
हम विश्वक चारि गो दर्शन, हम जगतक गुरु छी मीता...
सत्ता केर दु: शासन बनि कय, किऐ मुह केँ जाबि रहल छी...
हम मिथिला गाबि रहल छी।

कवि-कोकिल केर गीते, हम लोरिक-सलहेसक गाथा...
कारू केर दूधक धारा, हम ज्ञान आ तप केर माथा...
स्वाभिमानक स्वर्णिम पन्ना, बेर-बेर किऐ दाबि रहल छी...
हम मिथिला गाबि रहल छी।

रेणु केर कथा-पिहानी, हम दिनकर काव्यक धारा...
कवि यात्री केर छी अक्षर, हम राजकमल ध्रुवतारा...
मुदा कंठ अछि सुखा रहल, तैँ बेर-बेर मुह बाबि रहल छी...
हम मिथिला गाबि रहल छी।

धनुषाकेर पाँच शहीदे, आइ दऽ रहलय ललकारा...
दुनू दिशि भेटतय मिथिला, आउ दियौ कने जयकारा...
संतान हमर आइ मुट्ठी बान्हू, हम क्रान्ति लाबि रहल छी...