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हम मृत्यु को प्रेमिकाओं से अधिक जानते हैं / संजय कुमार शांडिल्य

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कोई मृत्यु के अगणित भयों के साथ
एक जीवन जी जाता है

अन्त तो प्रारम्भ से ही रहता है
मृत्यु बहती है साथ-साथ
ईश्वर की
चलती रहती हैं गोलियाँ

ईश्वर के दरख़्त से
लटकती रहती हैं गर्दनें
ईश्वर के कुएँ में
टूट जाती है रीढ़ की हड्डी

ईश्वर कारें चलाकर
रौंदता है
और ट्रैक्टर के पहिए से
कुचल डालता है

ईश्वर फेंक आता है
हमारी लाशें गंडक की दियर में
हम मृत्यु से नहीं
इस पृथ्वी पर अनन्त
काल से ईश्वर से डर रहे हैं

मृत्यु तो साथ चलती हुई
सब्ज़ी ख़रीद आती है
मृत्यु साईकिल चला कर
घरों में दूध की बोतलें
डाल आती है

मृत्यु कर आती है विदेश-यात्राएँ
अन्तरिक्ष में जाकर पृथ्वी
पर लौट आती है मृत्यु
सिर पर झुलती है
बिजली के तारों में

हम मृत्यु को प्रेमिकाओं से
अधिक जानते हैं
हमें ईश्वर मारता है
हम उसका पता नहीं जानते
हमने उसकी शक़्ल नहीं देखी है

वह सात पर्दो में रहता है
और गोलियाँ बरसाता है ।