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हम युवा इस गिरि अंचल के / जितेंद्र मोहन पंत


    हम युवा इस गिरि अंचल के,
        नया जोश दिखलायेंगे।
    मातृभूमि के रक्षक बनकर
       'पर्वत' खूब सजायेंगे।

डटे हुए हैं सीमा पर हम, राष्ट्र स्वतंत्रता के हैं प्रहरी।
शांति अहिंसा के आराधक, बाधा आगे कभी न ठहरी।।
तूफानों की राह बदलते, चट्टानों को मार गिराते।
राह में कंटक जो भी आये, उन्हें समूल हैं उखाड़ते।1।
   
  हम वीर जो चट्टानों में
       हरित क्रांति को लायेंगे।
    मातृभूमि के रक्षक बनकर
       'पर्वत' खूब सजायेंगे।

हम सुमन जो कमल करों से, चमन को अपने सजा रहे हैं।
नये विश्व के नये प्रणेता, नयी सी दुनिया बसा रहे हैं।।
गिरिमंडल को विकसित करने, खून पसीने को बहा रहे हैं।
वृक्षारोपण कार्य को करके, वनों को अपने बढ़ा रहे हैं।2।

    नंगी धरती पर वृक्ष लगाकर
       'मधुवन' मधुर बनायेंगे।
    मातृभूमि के रक्षक बनकर
       'पर्वत' खूब सजायेंगे।

शैल सुविकसित सबल करने को, सदा स्वच्छ ही कर्म करेंगे।
'न झुक सकेंगे' इस आत्मबल पर, उत्तराखंड की ढाल बनेंगे।।
सदाचरण की राह पे चलकर, जग में अपना नाम करेंगे।
सदा कर्म ऐसा ही करेंगे, जो 'जन' हमको याद करेंगे।3।

    चलो सभी सदगुण अपनाकर
       'जीतेंद्रिय' कहलायेंगे।
    मातृभूमि के रक्षक बनकर
       'पर्वत' खूब सजायेंगे।