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हम विकट ग़रीब-प्रेमी हैं / अमिताभ बच्चन

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हम विकट गरीब-प्रेमी हैं
चाहे कोई सरकार बने
हम उसे ग़रीबों की सरकार मानकर
उसके सामने अपना प्रलाप शुरू कर देते हैं

ग़रीबों के बारे में
हम दृष्टि-दोष से पीड़ित हैं
उनका जिक्र आया नहीं
कि हम रोना शुरू कर देते हैं

ऐसी क्या बात है
कि सारे ग़रीब हमें मरीज़ ही दिखते हैं
लाचार, कर्ज़ में डूबे, कुपोषित, दर्द से चीख़ते,
चुपचाप मरते हुए

उछलते-कूदते, नाचते, शराब पीकर डोलते ग़रीब
हमें पसन्द क्यों नहीं हैं

बम फोड़ते, डाका डालते, आतंक मचाते गरीबों को
हम गरीब क्यों नहीं मानते

ग़रीब घेरते हुए
ग़रीब घिरते हुए
ग़रीब मुठभेड़ करते हुए
मरते-मारते हुए ग़रीब हमें सपनों में भी नहीं दिखते

ग़रीबों को
राज बनाते
मन्त्रालय चलाते देखना
हमारे वश में क्यों नहीं

हम बीमार ग़रीबों को
अस्पताल, बिस्तर और मुफ़्त दवा से ज़्यादा
कुछ और क्यों नहीं देना चाहते

हम उन्हें साक्षर हट्टे-कट्टे मज़दूरों से ज़्यादा
किसी और रूप में क्यों नहीं देख पाते