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हम सुआ नहीं हैं पिंजरे के / मनोज जैन 'मधुर'

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संदेश नही विज्ञापन के
जो बिना सुने
कट जाएँगे
आराध्य हमारा वह ही है
जिसके तुम नित गुण गाते हो
हम भी दो रोटी खाते हैं
तुम भी दो रो टी खाते हो
छू लेंगें शिखर न
भ्रम पालो हम विना चढ़े
हट जाएँगे

उजियारा तुमने फैलाया
तोड़े हमने सन्नाटे हैं
प्रतिमान गढ़े हैं तुमने तो
हमने भी पर्वत काटे हैं
हम ट्यूव नहीं हैं डनलप के
जो प्रैशर से
फट जाएँगे

है सोच हमारी व्यवहारिक
परवाह न जंतर मंतर की
लोहू है गरम शिराओं का
उर्वरा भूमि है अंतर की
हम सुआ नहीं है पिंजरे के
जो बोलोगे
रट जाएँगे

उलझन से भरी पहेली का
इक सीधा सादा सा हल है
बेअसर हमारी बात नही
अपना भी ठोस धरातल है
हम बोल नहीं है नेता के
जो वादे से
नट जायेगे