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हम से वो पूछते हैं कि क्या है ये ज़िन्दगी / मोहम्मद इरशाद

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हम से वो पूछते हैं कि क्या है ये ज़िन्दगी
हर शाम है धुआँ-धुआँ हर सुबह रोशनी

अफसोस क्या करें के वो जो दिन गुजर गए
आ मिल गुज़ार ले जो बाकी है ज़िन्दगी

तेरी नज़र पड़ी तो हम क्या से क्या हुए
तू है मेरा ख़ुदा तेरी करते हैं बन्दगी

हमने तो नाम आप से पूछा था आपका
लेते हो नाम गैर का कैसी ये बेख़ुदी

सुबह को जब मिला तो गले मिल के गया था
ऐसे मिला वो शाम को जैसे है अजनबी

‘इरशाद’ ज़िन्दगी को ज़िन्दादिली से जी
मायूस हो के जीना है मानिन्दे ख़ुदकुशी