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हम हार गए लेकिन मोहब्बत को हासिल कुछ भी न हुआ / महमूद दरवेश / विनोद दास

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हम हार गए लेकिन मोहब्बत को हासिल कुछ भी न हुआ
चूँकि तुम मोहब्बत ! एक बिगडैल बच्ची हो ।
तुमने आसमान का एकमात्र दरवाज़ा
और हमारे अनकहे लफ्ज़ों को चकनाचूर कर दिया
फिर गायब हो गईं
 
आज हमने न जाने कितने गुलों को नहीं देखा
न जाने कितनी राहों ने
ज़ंजीरों में बन्धे आदमी के दिल के दुखों को दूर नहीं किया
न जाने कितनी लड़कियों की उम्र
हमसे आगे निकलकर उस जगह पहुँच गई
जहाँ हम घोड़ों का हिनहिनाना नहीं देख सकते थे

न जाने कितने गाने हमारे पास आए
लेकिन हम सो रहे थे
कितने सारे नए चाँद तकिये पर आराम करने के लिए उतर आए थे
न जाने कितने चुम्बन हमारा दरवाज़ा खटखटाकर चले गए जब हम बाहर थे
न जाने कितने सपने हमारी नींद में खो गए
 
जब हम चट्टानों में रोटी की तलाश कर रहे थे
न जाने कितने परिन्दे हमारी खिड़कियों के इर्द-गिर्द मण्डरा रहे थे
जबकि हम एक स्थगित दिन में अपनी ज़ंजीरों के साथ खेल रहे थे
हमने बहुत कुछ खोया लेकिन मोहब्बत को कुछ भी हासिल न हुआ
चूँकि तुम मोहब्बत ! एक बिगडैल बच्ची हो ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास