Last modified on 11 नवम्बर 2009, at 21:52

हरि-सिर बाँकी बिराजै / भारतेंदु हरिश्चंद्र

हरि-सिर बाँकी बिराजै।
बाँको लाल जमुन तट ठाढ़ो बाँकी मुरली बाजै।
बाँकी चपला चमकि रही नभ बाँको बादल गाजै।
’हरीचंद’ राधा जू की छबि लखि रति मति गति भाजै॥