Last modified on 19 मई 2014, at 23:00

हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुशकिल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़ / ग़ालिब

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:00, 19 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ग़ालिब |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poe...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़
दुआ क़ुबूल हो या रब कि उम्र-ए-ख़िज़्र दराज़

न हो ब-हर्ज़ा बयाबाँ-नवर्द-ए-वहम-ए-वुजूद
हुनूज़ तेरे तसव्वुर में है नशेब-ओ-फ़राज़

विसाल जल्वा तमाशा है पर दिमाग़ कहाँ
कि दीजे आइना-ए-इन्तिज़ार को पर्दाज़

हर एक ज़र्रा-ए-आशिक़ है आफ़ताब-परस्त
गई न ख़ाक हुए पर हवा-ए-जल्वा-ए-नाज़

न पूछ वुसअत-ए-मै-ख़ाना-ए-जुनूँ ग़ालिब
जहाँ ये कासा-ए-गर्दूं है एक ख़ाक-अंदाज़

फ़रेब-ए-सनअत-ए-ईजाद का तमाशा देख
निगाह अक्स-फ़रोश-ओ-ख़याल-ए-आइना-साज़

ज़-बस-कि जल्वा-ए-सय्याद हैरत-आरा है
उड़ी है सफ़्हा-ए-ख़ातिर से सूरत-ए-परवाज़

हुजूम-ए-फ़िक्र से दिल मिस्ल-ए-मौज लर्ज़ां है
कि शीशा नाज़ुक ओ सहबा है आब-गीन-गुदा

असद से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ वो मअनी है
कि खींचिए पर-ए-ताइर से सूरत-ए-परवाज़