भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हरी हरी गोबर घोलती / मालवी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:29, 29 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=मालवी }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हरी हरी गोबर घोलती
गज मोती चौक पुरावो
कुम्भ-कलश अमृत भरियाजी
जानूं मोरित आज
आवो म्हारा रामचंद आवजो
जाकी जोती थी वाट
ऊँची अटारी रगमगी
दिवलो जले रे उजास
खेला-मारूणी खेले सोगटा खोलो मनड़ा री बात
आबो म्हारा रामचंद आवजो
जेकी जोती थी वाट
लीली दरियाई को घाघरों
साड़ी रंग सुरंग
अंगिया पहने कटावकी जी
बंदा खोलो सुजान
छींकत घोड़ीला जीण कस्या
बरजत हुवा असवार
राय आंगण बिच धन खड़ी
पीवू खड़ाजी, जीवो छींकन हार।