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हरेक शै से ज़ियादा वो प्यार करता है / सलीम रज़ा रीवा

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हरेक शै से ज़ियादा वो प्यार करता है
तमाम खुशियाँ वो मुझपे निसार करता है

मैं दिन को रात कहूँ वो भी दिन को रात कहे
वो आँख मूंद के यूँ एतबार करता है

मै जिसके प्यार को अब तक समझ नही पाया
तमाम रात मेरा इंतज़ार करता है

हमें तो प्यार है गुल से चमन से खुश्बू से
वो कैसा शख्स है फूलों पे वार करता है

मुझे खामोश निग़ाहों से देखना उनका
अभी भी दिल को मेरे बेक़रार करता है

वो जिसने पैदा किया हम सभी को दुनिया में
वही खिजां को भी रश्क़ - ए- बहार करता है

उसे ही ख़ुल्द की नेमत नसीब होगी रज़ा
ख़ुदा का ज़िक्र जो लैलो - नहार करता है